मैंने कहा- नहीं। ऑफिस ने कहा- अलर्ट रहना, आपको देखना चाहिए।, रात 12 बजे के करीब भेजे गए लिंक पर अवॉर्ड सेरेमनी देखना शुरू किया। इतने में बेटा आ गया पूछा- पापा सोना नहीं है? This website follows the DNPA Code of Ethics. For reprint rights: Syndications Today, A deserted street is seen through barbwire set up as a blockade during curfew in Srinagar, Aug. 6, 2019. Yasin, along with his colleagues Mukhtar Khan and Channi Anand, have won the 2020 Pulitzer Prize in feature photography, for capturing the Kashmir conflict after the Narendra Modi government on August 5 last year abrogated special provision under Article 370 … चन्नी आनंद की कहानी वैसे ही जैसी उन्होंने बताई... एजेंसी ने ही मेरा नाम भेजा था। मुझसे फोटो मंगवाए थे, शायद तीन-चार महीने पहले की बात है। ठीक से याद भी नहीं। फिर 4 मई को शाम ऑफिस से फोन आया। जूम कॉल पर आ जाओ बात करना है। मीटिंग है।, मुझे लगा रूटीन मीटिंग होगी। या फिर कोरोना का अलर्ट देने मीटिंग बुलाई होगी। मेल भी आते रहते हैं इसके लिए।, मीटिंग शुरू हुई तो बॉस ने रोज के हालचाल पूछे। मैंने मजाक में ही सीनियर से पूछ लिया- ‘सैलरी तो नहीं बढ़ रही।’ उन्होंने कहा- आज पुलित्जर अवॉर्ड दिए जाने हैं तो लिंक भेजेंगे, आप लोग देखना। फिर बॉस ने पूछा- आपने देखा है कभी? बेटी तो गूगल करने लगी कि आखिर ये अवॉर्ड क्या होता है। बेटा अपनी मां को बताने लगा कि पता है ये अवॉर्ड क्या होता है।, इस बीच हम वीडियो लिंक पर अवॉर्ड सेरेमनी देख रहे थे। तभी मुझे मेरा नाम सुनाई दिया। मैं तो एक मिनट के लिए अवाक ही रह गया। फिर कुछ संभला तो रोने लगा। वो भी जोर-जोर से। बच्चे भी खुशी से उछल पड़े। तभी ऑफिस से फोन आ गया। वो कहने लगे फोटो शूट करो और तुरंत फैमिली पिक्चर भेजो। घर पर हम चार ही थे।, मैंने पड़ोसी को उठाया। तब रात के पौने एक बज रहे होंगे। यूं तो मास्क के बिना घर से नहीं निकलता, लेकिन तब मास्क डाले बिना ही चला गया था। पड़ोसी को आवाज दी तो उसकी मम्मी बाहर आई। वो घबरा गईं इतनी रात को क्या हो गया।, पड़ोसी बाहर आया तो मैंने बोला- जल्दी कर, तेरा कैमरा ला। उसने सोचा एनिवर्सरी है शायद। बिना चप्पल पहने ही वह आ गया। मैंने बताया- अवॉर्ड निकला है मेरा। तभी बीवी तैयार होने चली गई, बेटी भी नहीं मानी वो भी मैकअप के बाद ही फोटो खिंचवाने को राजी हुई।, रात को सवा बजे दफ्तर को फोटो भेजी। साथ ही सब तरफ से फोन आना शुरू हो गए। मुझे नहीं पता कि सब देख रहे होंगे। मैंने तो पहली पहली बार ये अवॉर्ड देखा था। चैनल के फोन, आने लगे। तड़के तीन बजे तक फोन आते रहे। नींद तो पता नहीं कहां चली गई थी।, पूरी जिंदगी उस एक रात में फ्लैश बैक कि तरह मेरी आंखों में घूम गई। सोचा कहां से कहां पहुंच गया। 17-18 साल उम्र होगी जब परिवार में एक शादी थी। वहां आए एक फोटोग्राफर से लेकर पहली बार मैंने कैमरा छुआ था। दो तीन क्लिक भी की थीं। पता नहीं कैसी फोटो आई, लेकिन कैमरे से ये मेरी पहली मुलाकात थी।, फिर कुछ दिनों बाद मेरा बड़ा भाई एक कैमरा खरीदकर लाया। उसके बाद उस कैमरे पर मैंने कब्जा ही कर लिया। शौकिया फोटोग्राफी करने लगा। उसका नाम था मिनॉल्टा, वो पहला ऑटोमैटिक कैमरा था जो मैंने देखा।, भाई का एक जनरल स्टोर था। पूरा परिवार मुझ पर दबाव डालने लगा कि मैं दुकान पर बैठा करूं। मैं दुकान पर जाता, लेकिन फिर बीच में से भागकर कैमरा लेकर निकल जाता। परिवार वाले कहने लगे, इसकी शादी कर दो तो ये दुकान पर बैठने लगेगा।, लेकिन मैंने सोच लिया था कि दुकान पर तो कभी नहीं बैठूंगा। मैं वहां के लोकल अखबार में नौकरी ढूंढने लगा। एक दो जगह इंटरव्यू भी हुआ। ये 1996 की बात है। इसी बीच परिवार ने मेरी शादी तय कर दी। 7 दिसंबर को मेरी शादी हुई और 11 दिसंबर को मैंने जम्मू के ही एक लोकल अखबार स्टेट टाइम्स में नौकरी कर ली।, फोटोग्राफी के लिए कभी कोई क्लास नहीं की, कोई कोर्स भी नहीं। खुद प्रैक्टिकल करता गया और सीखता गया। बीबीसी, सीएनएन के वीडियो-फोटो देखे। पहले मैं वीडियोग्राफी करना चाहता था। फिर सोचा इसमें क्रिएटिविटी ज्यादा नहीं दिखा पाऊंगा। आइडिया तो फोटो में ही निकलेगा।, मैंने फोटोग्राफी खुद डेवलप कर खुद प्रिंट बनाकर सीखी। लैब के मालिक नखरे दिखाते थे कि लाइट नहीं है। तब फील्ड में काम करनेवाले किसी फोटोग्राफर को पकड़ लेता और कहता सिखाओ कैसे खींचते हो। ऑफिस में जितने न्यूजपेपर-मैगजीन आते थे, सभी देखता था। रात को 12 बजे तक ऑफिस में बैठा रहता था इसके लिए।, लोकल अखबार में काम करता था तो मन में था कि किसी नेशनल अखबार के लिए काम करूं। फिर जम्मू में अमर उजाला अपना एडिशन लेकर आनेवाला था। वहां इंटरव्यू दिया, सिलेक्शन हुआ और ज्वाइन कर लिया। लेकिन दो साल अखबार ही नहीं आया। फिर मैं एसोसिएट प्रेस में बतौर कंट्रीब्यूटर काम करने लगा।, उन दिनों जम्मू में न्यूज बहुत होती थी, आतंकी हमले होते थे। 1999-2000 की बात है। एजेंसी के लिए काम करनेवाले हम तीन फोटोग्राफर थे, डेस्क वाले मेरा इंतजार करते थे। मैं फोटो भेजूंगा फिर रिलीज करेंगे।, कैमरा रोल पर शूट करते, लैब में धुलवाते, फिर पिक्चर बनती थी, तब स्कैन कर भेजते थे। काफी वक्त लग जाता था। तभी कासिम नगर में आतंकी अटैक हुआ। मैं एक और लड़के के साथ सबसे पहले वहां पहुंच गया।, मेरे पास पुराना स्कूटर था। उसके पास नया था। हम उसके स्कूटर पर फर्राटे से पहुंच गए। जब पहुंचे तो डेड बॉडी निकाल रहे थे। बच्चे रो रहे थे। फायरिंग शुरू हो गई। वहां घर बनाने को बड़े-बड़े गड्डे थे। हम उसी में बैठे रहे। वो मेरी जिंदगी की सबसे मजबूत तस्वीरें थीं।, मैंने एजेंसी में साथ काम करनेवाले एक सीनियर से पूछा ऑफिस कैमरा नहीं देता क्या?